रहस्यमाई चश्मा भाग - 43
सर्वानद गिरी अतीत के उस दर्पण को देखने लगे थे जिसे स्वंय उन्होंने देखा था जिसकी पुनः कल्पना मात्रा से कांप उठते जब उनके परिवार को उग्र भीड़ ने बेरहमी से काट डाला तब वह सर्वानद गिरी ने बचपन मे अपने पिता से राम वन गमन एव वन में वनवासियों द्वारा उनकी सेवा सहयोग के विषय मे सुना था और जीवन मे वही सत्य अनुभव कर रहे थे,,,,
पूर्वी पाकिस्तान में सब कुछ गंवा देने के बाद एव भारत मे अपने रिश्ते नातों अपनो द्वारा तिरस्कृत कर दिए जाने के बाद बनवासियो ने ही उन्हें राम की तरह गले लगाया जबकि वनवासी समाज कि संस्कृति सांस्कार सामान्य जन को स्वीकार नही करती इतिहास इसका साक्षी है कि जब भी सामान्य जन को आवश्यकता पड़ी वन संपदा और वनवासी समाज का उपयोग दुरपयोग किया भोले भाले लोग अपनी वन सीमाओं तक सीमित किसी के जीवन समाज मे तब तक नही हस्तक्षेप करते जव तक उनको स्वंय के लिये कोई भय ना हो राम तो अयोध्या नंदन थे,,,,,,
जाने कितने ऋषि महर्षियों ने बनवासियो के ही बीच जन्म लिया साधना किया और युग समय काल को नव जागृति चेतना का संदेश दिया मार्ग दिशा दृष्टि दिया विश्वामित्र वाल्मीकि सांदीपनि द्रोणाचार्य परशुराम के गुरुकुल आश्रम के भी बनवासियो के बीच ही स्थापित होकर युग को ज्ञान के प्रकाश से प्रवाहित करते रहे।आदिवासी वनवासी भगवन भोले शंकर का अपना परिवार है वहा धर्म केवल जीवन और प्राणि कल्याण और आस्था केवल परमात्मा है,,,,,
वही वनवासी समाज सर्वानद गिरी के लिए जीवन का सम्बल सहारा बन चुका था जिस प्रकार शुभा को बनवासी समाज बेसहारा उठाकर लाया था ठीक उसी प्रकार मात्र तेरह वर्ष कि आयु में सब कुछ गंवा चुके किशोर को जो वर्षो से भटकता जाने कहा से काला हांडी पहुंच गया था जिसे मॉनव और मानव समाज देखकर भय लगता था अमूमन जिस आयु में सर्वानद नंद ने अपना घर परिवार रिश्ते नाते गंवा दिया था उस उम्र में धर्म आदि का बहुत ज्ञान सामाजिक ज्ञान नही रहता समाज की पहचान तो अवश्य होती है,,,,
लेकिन क्रुरता धूर्तता द्वेष घृणा का बीजारोपण तक नही रहता ऐसी अवस्था मे सर्वानंद जी ने सामाजिक घृणा धर्मांधता और विद्वेष के प्रतिशोध पर अपना सर्वस्व गंवा चूके थे ऐसी स्थिति में वनवासीयो ने उन्हें सहारा दिया वन प्रदेश के सदियों पुराने मंदिर को जिसकी देख रेख वनवासी स्वंय करते थे उन्हें सौंप दिया तो क्या शुभा और सर्वानद नंद नियत के खेल दो पात्र एक ही है जिन्हें अब यह प्रश्न सर्वानद जी के लिए शोध अन्वेषण का विषय था जबसे शुभा ने यशोवर्धन का नाम निद्रा में डरी सहमी प्रतिक्रिया के साथ लिया था लेकिन कैसे सच्चाई तक पहुंचा जा सके यही प्रश्न बहुत जटिल था।वनवासी समाज के मुखिया भी अपने समाज की मानस पुत्री के इस दशा पर बहुत चिंतित थे उन्हें यही चिंता सताए जा रही थी कि चन्दर जब संत समाज से मिलने अपने नियमित मुलाकात के शिलशिले में आये तो सर्वानंद गिरी ने अपनी आशंका को वनवासी समाज के समक्ष रखते हुये कहा कि सम्भव है,,,,,
शुभा यशोवर्धन कि भारत की स्वतंत्रता के समय हुये दंगो में बची एक मात्र खानदान की निशानी हो लेकिन यह भी सम्भव है कि यह सत्य भी हो संम्भवः हो असत्य भी हो क्योकि एक नाम के बहुत से लोग हो सकते है अतः केवल अनुमान ही है क्योंकि मैं जिस यशोवर्धन को जानता हूँ वह शेर पुर के बड़े आदमी थे और उनकी एक पुत्री दो पुत्र थे सर्वानद जी बोले हमे बहुत अच्छी तरह याद है कि यशोवर्धन जी अपनी पुत्री के पांचवी वर्षगांठ पर आशीर्वाद के लिए मंदिर आये थे तब मेरी उम्र भी लगभग चार पांच ही वर्ष थी उस समय मेरे पिता संभुनाथ गिरी ने यशोवर्धन की लाड़िली जिसका नाम बड़े प्यार से शुभा रखा था उंसे लेकर आये थे और मेरे पिता ने उनसे कहा था शुभा का भाग्य लिखने वाले ने जो कुछ भी लिखा है!
वही सत्य होगा शुभा बिटिया को अपने जीवन का युद्ध अकेले ही लड़ना होगा और इसकी सहायता भोले नाथ ही करेंगे पता नही क्यो हमे एक संदेह कहे या आशा शुभा यशोवर्धन कि ही बेटी है लेकिन मुझे अपने पिता का आशीर्वाद तो याद है लेकिन पांच वर्ष कि शुभा अब चालीस वर्ष से ऊपर हो चुकी होगी मुझे ही आये आप लोंगो के यहॉ बीस पच्चीस वर्ष हो गए ब्राह्मण हूँ कोई व्यवसाय तो कर नही सका दर दर भटकते हुए वनवासी क्षेत्र में पहुँच गया और अपने पांडित्य कार्य भग्यवान कि सेवा और पूजन ध्यान कर रहा हूँ और यदा कदा आदिवासी समाज के नवयुवकों को शिक्षा अपनी योग्यता अनुसार दे रहा हूँ लेकिन मेरा भ्रम भी हो सकता है वनवासी समाज के मुखिया ने कहा ईश्वर ही सबका मालिक है सम्भव है कोई रास्ता शुभा के जीवन के लिए सोच रखा हो ।
जारी है
kashish
09-Sep-2023 08:14 AM
Nice
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Gunjan Kamal
16-Aug-2023 12:34 PM
शानदार भाग
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